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आखिर क्यों सही से काम नहीं कर पा रही साहित्य अकादमियां?

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पिछले दशकों में पुरस्कारों की बंदर बांट कथित साहित्यकारों, कलाकारों और अपने लोगों को प्रस्तुत करने के लिए विशेष साहित्यकार, पुरोधा कलाकार, साहित्य ऋषि जैसी कई श्रेणियां बनी है। जिसके तहत विभिन्न अकादमियां एक दूसरे के अध्यक्षों को पुरस्कृत कर रही है और निर्णायकों को भी सम्मान दिलवा रही है। इन पुरस्कारों में पारदर्शिता का अभाव है। राज्य अकादमी पुरस्कारों की वार्षिक गतिविधियां संदिग्ध है। जो कार्य एक वर्ष में पूर्ण होने चाहिए उनको करने में सालों लग रहें है। पुरस्कारों के लिए मूल्यांकन प्रक्रिया स्पष्ट और समयानुसार नहीं है। साहित्य किसी भी देश और समाज का दर्पण होता है। इस दर्पण को साफ़-सुथरा रखने का काम करती है वहां की साहित्य अकादमियां। लेकिन सोचिये क्या होगा? जब देश या राज्य का आईना सही से काम न कर रहा हो तो वहां की सरकार पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है। जी हाँ, ऐसा ही कुछ हो रहा है देश के राज्यों की साहित्य अकादमियों में। किसी भी राज्य की साहित्य अकादमी के अध्यक्ष है होते हैं राज्य के मुख्यमंत्री। मुख्यमंत्री जिस संस्था के अध्यक्ष हो वही संस्था अगर सही से काम न करें तो बाकी संस्थाओं की स्थित...

सियासत के इस दौर में तो पलटूओं की भीड़ है

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    कैसे मेरा दिल कह दे कि जंगजूओं की भीड़ है, सियासत के इस दौर में तो पलटूओं की भीड़ है। घुट रहा है दम सभी का, नफ़रतों के धुएं में, कह रहा है राजा फिर भी, खुशबूओं की भीड़ है। एक बाज़ीगर जो आ गया है, नक्शे के बीच में, पब्लिक के हाथों में भी, डमरूओं की भीड़ है। उसके मन की बात में जब, जादू अजब-गजब है, क्यूं उसकी मदद को फिर घुंघरूओं की भीड़ है। झूठा ढिंढोरा पिट रहा है, नारी के सम्मान का, मेरे शहर के हर चौराहे पर मजनूओं की भीड़ है। कोई तो समझा दे अपने मन की कहने वाले को, जनता के भी मन के अंदर आरज़ूओं की भीड़ है। सोचता हूं, सोचता रहता हूं, अक्सर मैं यही, किसको अपना लीडर मानूं स्वयंभूओं की भीड़ है। विकास के इस दौर में भी, मर रहे हैं भूख से, फैसला होता नहीं कुछ, गुफ्तगूओं की भीड़ है। इधर कौन बेगुनाह और कौन गुनहगार है, ज़फ़र, कैसे पहचानोगे तुम, हुबहूओं की भीड़ है। ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र एफ-413, कड़कड़डूमा कोर्ट, दिल्ली -32 zzafar08@gmail.com

आखिर क्यों सही से काम नहीं कर पा रही साहित्य अकादमियां?

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 पिछले दशकों में पुरस्कारों की बंदर बांट कथित साहित्यकारों, कलाकारों और अपने लोगों को प्रस्तुत करने के लिए विशेष साहित्यकार, पुरोधा कलाकार, साहित्य ऋषि जैसी कई श्रेणियां बनी है। जिसके तहत विभिन्न अकादमियां एक दूसरे के अध्यक्षों को पुरस्कृत कर रही है और निर्णायकों को भी सम्मान दिलवा रही है। इन पुरस्कारों में पारदर्शिता का अभाव है। राज्य अकादमी पुरस्कारों की वार्षिक गतिविधियां संदिग्ध है। जो कार्य एक वर्ष में पूर्ण होने चाहिए उनको करने में सालों लग रहें है। पुरस्कारों के लिए मूल्यांकन प्रक्रिया स्पष्ट और समयानुसार नहीं है। साहित्य किसी भी देश और समाज का दर्पण होता है। इस दर्पण को साफ़-सुथरा रखने का काम करती है वहां की साहित्य अकादमियां। लेकिन सोचिये क्या होगा? जब देश या राज्य का आईना सही से काम न कर रहा हो तो वहां की सरकार पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है। जी हाँ, ऐसा ही कुछ हो रहा है देश के राज्यों की साहित्य अकादमियों में। किसी भी राज्य की साहित्य अकादमी के अध्यक्ष है होते हैं राज्य के मुख्यमंत्री। मुख्यमंत्री जिस संस्था के अध्यक्ष हो वही संस्था अगर सही से काम न करें तो बाकी संस्थाओं की ...

सुबह छोड़ कर मुनव्वर राना चला गया*

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  दुनियां से उसका आबो दाना चला गया, सुबह छोड़ कर मुनव्वर राना चला गया। हर रिश्ते को जिसने ढाला था ग़ज़लों में, उसकी सांसों का ताना-बाना चला गया। कहां से निकालेंगे नई ग़ज़लें संभालकर, बस्ती से शायरी का बारदाना चला गया। इन हालातों पे डाले कौन तंज़ की चादर, तमाम हौसलों का मालखाना चला गया। ऐसे ही नहीं भटके सही मंज़िलों से लोग, रहबर  कसौटी  पर आज़माना चला गया। ये गली, मौहल्ले, शहर यूं ही नहीं उदास, आज रौनकों का आना जाना चला गया। कैसे रात भर की मस्ती में झूमेंगे मुशायरे, 'ज़फ़र,' ग़ज़लों का कारखाना चला गया। ज़फ़रुद्दीन"ज़फ़र" एफ -413, कड़कड़डूमा कोर्ट, दिल्ली-32

*उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री श्री केशव प्रसाद मौर्य नवाजेंगे बड़वा के डॉ. सत्यवान सौरभ को पंडित प्रताप नारायण मिश्र राष्ट्रीय युवा साहित्यकार सम्मान 2023 से।*

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 💐💐💐✌️✌️✌️✍️✍️✍️👏🏻👏🏻👏🏻 (स्कूल की प्रार्थना सभा में बोलना और रोजाना नोटिस बोर्ड पर काव्य पंक्तियाँ लिखने वाले बच्चे ने आज सालों बाद साहित्यकार बनने का सफर तय कर डाला। हरियाणा के युवा साहित्यकार डॉ सत्यवान सौरभ को यह पुरस्कार उनके दोहा संग्रह ‘तितली है खामोश’ पर दिया गया है। डॉ सत्यवान सौरभ को भाऊराव देवरस सेवा न्यास लखनऊ द्वारा पंडित प्रताप नारायण मिश्र स्मृति युवा साहित्य सम्मान- 2023 का साहित्य पुरस्कार दिया जाएगा। इस अवसर पर डॉ सौरभ को स्मृति चिन्ह, शारदे प्रतिमा, शॉल, प्रशस्ति पत्र एवं ₹25000 राशि का चेक प्रदान किया जाएगा। डॉ सत्यवान सौरभ देश के ऐसे लेखक/कवि है जिनकी पहली पुस्तक मात्र कक्षा दसवीं में पढाई के दौरान यादें नामक काव्य संग्रह के रूप में आई और तब से ये खूबसूरत सफर जारी है और अपनी सौरभ से देश-विदेश को महका रहा है।)  16 नवंबर 2023 लखनऊ/दिल्ली/हिसार/भिवानी: स्कूल की प्रार्थना सभा में बोलना और रोजाना नोटिस बोर्ड पर काव्य पंक्तियाँ लिखने वाले बच्चे ने आज सालों बाद साहित्यकार बनने का सफर तय कर डाला। साहित्य के काव्य क्षेत्र में योगदान देने वाले भिवानी जिले के ...

बज्मे फराज ए अदब,रजिस्टर्ड ने गालिब एकेडमी, बस्ती निजामुद्दीन, नई दिल्ली. 13 मे कनाडा से आए विश्व विख्यात शायर, विद्वान, स्कॉलर, तनकीद निगार, प्रख्यात लेखक वा अन्य गुणों के मालिक डॉक्टर सय्यद तकी आबेदी के लिए अन्तर राष्ट्रीय नातिया मुशायरा आयोजित कराया

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नई दिल्ली बज्मे फराज ए अदब,रजिस्टर्ड ने गालिब एकेडमी, बस्ती निजामुद्दीन, नई दिल्ली. 13 मे कनाडा से आए विश्व विख्यात शायर, विद्वान, स्कॉलर, तनकीद निगार, प्रख्यात लेखक वा अन्य गुणों के मालिक डॉक्टर सय्यद तकी आबेदी के लिए अन्तर राष्ट्रीय नातिया मुशायरा आयोजित कराया।जिसकी अध्यक्षता डॉक्टर सैय्यद तकी आबेदी ने की,जबकि निजामत, मेज़बान सरफराज़ अहमद फ़राज़ देहलवी ने बखूबी अंजाम दी। महमाने खुसूसी के तौर पर नईम बदायूनी, मतीन अमरोहवी, डॉक्टर अकील अहमद और मेंहमान ए जी वकार के तौर पर संतोष  मिलवाते हाली का विमोचन किया और डॉक्टर तकी आबिदी ने तोसीफि खुतबा दिया। हाजरीन आपकी तकरीर से बहुत प्रभावित हुए।   शायरों ने अपना बेहतरीन कलाम पढ़ा। जिस से सामइन बहुत प्रभावित हुवे।    पेश हैं कुछ खास अशार..... भटके हुवे मंजिल पहुच जायेंगे खुद ही। रस्तों से अगर राहनुमाओ को हटा दो।। लोगों में फकत ऐब नज़र आते हैं जिस को।।। उसको भी कभी आयना खाने में बैठा दो।।।।  डॉक्टर सय्यद तकी आबिदी गुलो में खुशबू बसी हुई है खुलि हुई हैं दिलों की कालिया ये आज में कोन आया महक रही तमाम गलियां।।    मतीन...

बज्मे फ़राज़ ए अदब,रजिस्टर्ड के बैनर तले अबु धाबी, सऊदी अरब से तशरीफ लाए कोहना मश्क शायर अफरोज आलम के ऐज़ाज़ में अन्तरराष्ट्रीय मुशायरे का आयोजन किया गया

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 प्रेस रिलीज  नई दिल्ली बज्मे फ़राज़ ए अदब,रजिस्टर्ड के बैनर तले अबु धाबी, सऊदी अरब से तशरीफ लाए कोहना मश्क शायर अफरोज आलम के ऐज़ाज़ में अन्तरराष्ट्रीय मुशायरे का आयोजन किया गया। जिसकी सदारत आल इण्डिया रेडियो,आकाशवाणी की भूत पूर्व एंकर जहीना सिद्दीकी ने की, जबकि निजामत खुद मेज़बान वा प्रख्यात शायर सरफराज़ अहमद फ़राज़ देहलवी ने बखूबी अंजाम दी। मेहमाने खुसूसी के तौर पर बी के शीतल मुशायरे में मोजूद रहीं।     आलमी मुशायरे में जिन- जिन शौरा ने अपना कलाम पढ़ा उनके नाम निम्न हैं.......   अफरोज आलम, सरफराज़ अहमद फ़राज़ देहलवी, जहीना सिद्दीकी, प्रवीन व्यास,एहतराम सिद्दीकी, क़ासिर सेहस्वानी, भारत भूषण आर्या, अरिबा खान, सुषमा कुमारी साया आदि   चुनिंदा अशार आपकी खिदमत में पेश हैं.....    मैं तो समझा था कि वो भूल गए होंगे फ़राज़। मेरी चाहत पे मगर उनकी नज़र आज भी है।।    सरफराज़ अहमद फ़राज़ देहलवी दोस्ती ममता मोहब्बत प्यार अखलास वा वफ़ा। आज कल ये सब तिजारत की निगेहबान हो गईं।।         अफरोज आलम कतरे कतरे को जो तरसते हैं।  मेकद...

तू भी पायेगा कभी, फूलों की सौगात। धुन अपनी मत छोड़ना, सुधरेंगे हालात।।

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यदि सफलता अपेक्षा से अधिक समय लेती है तो इस दृढ़ विश्वास को चुनौती दी जा सकती है। लोग उनके कौशल और क्षमताओं पर संदेह करना शुरू कर सकते हैं, जिससे उनका आत्मविश्वास कम हो सकता है। भविष्य में उनकी सफलता को नुकसान हो सकता है क्योंकि वे आश्चर्यचकित होने लगते हैं कि क्या वे काफी अच्छे हैं। अपनी प्रेरणा को ऊंचा रखना और अपने उद्देश्यों पर अपना ध्यान केंद्रित करना महत्वपूर्ण है क्योंकि सफलता हमेशा जल्दी नहीं मिलती है। यहां तक कि अगर इसमें थोड़ा समय लगता है, तो लगातार प्रयास करने से हमें अंततः सफलता मिल सकती है। -डॉ सत्यवान सौरभ सफलता का विचार अक्सर किसी के उद्देश्यों को प्राप्त करने और किसी की महत्वाकांक्षाओं को साकार करने से जुड़ा होता है। बहुत से लोग सफलता की आकांक्षा रखते हैं क्योंकि इसे अक्सर जीवन की उपलब्धि के मापक के रूप में देखा जाता है। हालाँकि, सफलता हमेशा तत्काल नहीं होती है और इसके आने में समय लगता है। जब लोगों को अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अपेक्षा से अधिक समय तक इंतजार करना पड़ता है, तो ऐसा कहा जाता है कि उन्हें देर से सफलता मिली है। आखिर विलंबित सफलता अक्सर अनिश्चित काल तक क...

मैं अकेला और भी मजबूर होकर बैठ गया,

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 मैं  अकेला  और  भी  मजबूर  होकर  बैठ गया, जिसे भी  सच  कह  दिया  दूर  होकर बैठ गया। मन की  जो कलियां  थीं  सब  चटकती रह गईं, मैं क्या कहूं  उससे  नशे में चूर  होकर बैठ गया। कोई उम्मीद क्या रखे  उससे खेल  के मैदान में, दो क़दम  चलते ही जो  माज़ूर  होकर बैठ गया। मैंने  ज़िन्दगी  लगा दी  डिग्रियां  लेने में  लेकिन, वो दो अक्षर  पढ़ते ही  मग़रूर  होकर बैठ गया। मैं  मरहम  के  पौधों  को  पानी  देता  रहा गया,  ख़ंज़र  मेरी  हसरत में  दस्तूर  होकर  बैठ गया। कुछ  अंधेरे  इसलिए  भी  साथ   में  रहने  लगे, चांद  सा  चेहरा  था  जो  हूर   होकर  बैठ गया। अपने गांव के सरपंच की बाजीगरी को देखकर, पहले आया गुस्सा फिर काफ़ूर होकर बैठ गया। किसकी मज़ाल थी  मेरी मुस्कान छीन ले मगर,  एक  किस्सा ...

राजनारायण एक नाम नहीं इतिहास है पुस्तक समाजवादी विचारों एवं आंदोलनों पर विश्वास रखने वालों के लिये संजीवनी का काम करेगी- संजय सिंह

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ReportBy:  S A Betab नई दिल्ली। आम आदमी पार्टी के नेता व राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने कहा कि राजनारायण एक नाम नहीं इतिहास है पुस्तक समाजवादी विचारों एवं आंदोलनों पर विश्वास रखने वालों के लिये संजीवनी का काम करेगी। सांसद संजय सिंह यहां गांधी प्रतिष्ठान में समाजवादी चिंतक और राजनारायण के शिष्य व लेखक शाहनवाज हुसैन की लिखित पुस्तक राजनारायण एक नाम नहीं इतिहास है! के विमोचन समारोह को संबोधित कर रहे थे। इसका आयोजन लोकबंधु राजनारायण के लोग ट्रस्ट, लखनऊ के तत्वावधान में किया गया। सांसद सिंह ने कहा कि  राजनारायण को अधिकांश समाजवादी, बुद्धिजीवी एवं राजनीतिज्ञ केवल अन्याय के खिलाफ़ संघर्षशील योद्धा और सत्याग्रही के तौर पर ही जानते हैं। इसी को उनका व्यक्तित्व-कृतित्व मानकर उनका सतही मूल्यांकन किया जाता रहा, लेकिन राजनारायणजी की स्वतंत्रता सेनानी से शुरू होकर लोकबन्धु तक की यात्रा अविस्मरणीय है। कार्यक्रम में वरिष्ठ समाजवादी चिंतक एवं विचारक रघु ठाकुर ने आजादी में शामिल लोगों का इतिहास दबा दिया गया। राजनारायण की लोकतंत्र के प्रतिबद्धता को देखते हुए एक बार राममनोहर लोहिया ने कहा था कि देश मे...

सरकार हिंदी दिवस पर विशेष समारोह आयोजित कर करोड़ो रुपए विज्ञापन प्रचार पर खर्च करती हैं परन्तु हिदी और हिंदी भाषी क्षेत्रों,,, हिंदी भाषी विद्यार्थीयों के लिए बीजेपी सरकार ने क्या किया है आज तक???

 हिंदी दिवस की आपको बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएं हिंदी भाषी स्कूल कॉलेज के विद्यार्थी को ऑनलाइन एडमिशन और मेरिट के नाम पर अच्छे स्कूल कॉलेज से धीरे धीरे वंचित किया जा रहा है????? सरकार द्वारा हिंदी भाषी स्कूल कॉलेज सरकारी स्कूलों कॉलेजों का अनुदान राशि धीरे धीरे कम की जा रही है तथा हिंदी भाषी सरकारी स्कूलों कॉलेजों में शिक्षकों को नियुक्तियां नही की जा रही है पेंडिंग है??? हिंदी भाषी स्कूल के विद्यार्थीयो का विश्विद्यालयों और सरकारी नौकरी में इन्टरव्यू व प्रतियोगिता परीक्षाओं आदि में अनुपात बहुत तेजी से कम हो रहा है जबकि सरकारी स्कूलों कॉलेजों के शिक्षक बहुत ही अच्छी शिक्षा प्राप्त किए हैं किंतु ये शिक्षक अपने घर के बच्चो को हिंदी भाषी स्कूल कॉलेजों में नहीं पढ़ाते हैं???  सरकार का रवैया भी हिन्दी साहित्य हिन्दी भाषी स्कूल कॉलेज के बच्चों के प्रति उपेक्षित है सरकारी विभिन्न योजनाओं के कार्यों में इन स्कूल कॉलेज के शिक्षकों को लगाया जाता है और स्कूल कॉलेजों में अधिकांश छुट्टियां रखकर हिंदी भाषी स्कूल कॉलेज के बच्चों को पिछड़ने का या यूं कहें कि पिछाड़ने की सरकारी स्तर पर प्रयास...

उत्तराखण्ड के जातिगत अन्तरविरोधों को उजागर करता काव्य संग्रह ‘हिमालय दलित है’- चन्द्रकला

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 पहाड़ के सामाजिक व सांस्कृतिक यर्थाथ को बयां करती युवा कवि मोहन मुक्त की हाल में प्रकाशित पुस्तक है ‘हिमालय दलित है’। इसमें संग्रहित कविताएं उत्तराखण्डी समाज में ही नहीं, बल्कि पूरे भारतीय समाज में मौजूद जातीय व लैंगिक विभेद, उत्पीड़न को परत दर परत बेनकाब करती ब्राह्मणीय परम्पराओं, आचार-व्यवहार को भेदते हुए पाठकों के समक्ष तीखे प्रश्न खडे़ करती हैं। भारत जैसे स्तरीकृत समाज में जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त हमारा पूरा जीवन जाति से संचालित होता है। दलितों, दमितों, शोषितों और औरतों को हमेशा हाशिये पर रखा जाता है। उनकी उपेक्षा, अपमान, पीड़ा और यर्थाथ के साथ अपने जीवन की पीड़ा और आक्रोश को जोड़कर पाठकों के समक्ष नग्न सच्चाई को लाने का बेबाक और सहासिक प्रयास किया है, ‘हिमालय दलित है’ के लेखक मोहन ने।  ब्राह्मणवादी व पितृसत्तात्मक वर्चस्व की जिस संस्कृति से हमारा समाज संचालित होता है, शहरी परिवेश व संस्कृति के बीच में रहते हुए जातिगत अन्तरविरोधों को गहराई से न समझ पाने वाले मेरे जैसे पाठकों को यह पुस्तक एक दृष्टि देने में कामयाब होगी। आज भी भारत में जाति और लिंग के आधार पर हर स्तर, हर जगह भ...

पतंग

स्वतंत्रता दिवस की भरपूर तैयारिया चल रही थी।  आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर देश भर में अमृत महोत्सव मनाया जा रहा था। दिलशाद पाँचवी क्लास का छात्र था,अंकुर उसका सहपाठी था। दोनो पक्के दोस्त थे। 15 अगस्त को स्कूल में तिरंगा रैली और झंडा फहराने का आयोजन किया गया था। दोनो ने तिरंगा रैली में भरपूर भाग लिया। छुटटी होते हो दोनो घर आ गये। दिलशाद और अंकुर दोनो ने निर्णय लिया कि आज मस्ती करेंगे।  घर की छत पर पतंग उडायेंगे । दोनो में यह बात चल ही रही थी कि दिलशाद बोला  "मैम ने पतंग उड़ाने को मना किया है। मैम ने क्लास में आकर बताया था  कि देखो यह अखबार में छपी चाइनीज मांझे से एक बच्चे का गला कट  गया और उसकी मौत हो गयी।  मैम ने सभी बच्चों को अखबार दिखाया जिसमे यह खबर छपी थी। बच्चों से वादा  कराया गया कि वह  चाइनीज मांझे का इस्तेमाल नहीं करेंगे। परिंदो के परो में मांझा फँसने की बहुत सारी घटनाएं होती है।मांझे से तड़पते कबूतर को अंकुर ने आज ही देखा था। दिलशाद और अंकुर दोनो अपने- अपने घर चले गये। कुछ घंटो बाद दिलशाद ने शोर सुना कि एक बच्चा मिनी बस के नीचे आ गया है । ...

नगर पंचायत धौरा टांडा के चेयरमैन पद के उम्मीदवार ने कहा स्वास्थ्य, शिक्षा, और विकास के नाम पर लडूंगा चुनाव : मोहम्मद नाज़िम

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बेताब समाचार एक्सप्रेस के लिए बरेली से मुस्तकीम मंसूरी की रिपोर्ट,  बरेली, नगर पंचायत धौरा टांडा के युवा चेयरमैन पद के उम्मीदवार मोहम्मद नाज़िम ने अपने चुनावी अभियान को आगे बढ़ाते हुए कस्बा धौरा टांडा के वार्ड -13 मोहल्ला कुंडे वाली मस्जिद पर एक नुक्कड़ सभा में अपने विचार रखे! अपने कस्बे में फैली गंदगी, बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था, शिक्षा व्यावस्था जैसे आम आदमी के खा़स मुद्दों पर अपनी बात रखी! धौरा टांडा में 30 साल से खराब पड़ी टंकी के मुद्दे को भी छुआ! इस वक़्त टाउन एरिया में फैले भृष्टाचार को दूर करने की बात की तथा नेताओं के खिलाफ जनता के गुस्से को देखते हुए उन्होंने इस बार पार्टनरशिप पॉलिटिक्स को उखाड़ फेंकने का अह्वान किया!  मो० नाज़िम जो बेबाकी से जनता के मुद्दों कों उठाने के लिए जाने जाते हैं! इस नुक्कड़ सभा के माध्यम से उन्होंने कस्बे के विकास का खाका पेश किया! कस्बे की बेहतरी और युवा पीढ़ी के लिए एक कॉलेज तथा कस्बे के लिए एक सरकारी अस्पताल जैसे मुद्दों को उठाया! अपने कस्बे के विकास के नाम पर चुनाव में लोगों का सहयोग मांगा! मोहम्मद नाज़िम ने दूसरे लोगों द्वारा फैलाये दुष्प...

इंसानियत को बांटना दूर होना चाहिए

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  इंसानियत को बांटना दूर होना चाहिए, वसुधैव-कुटुंबकम् मशहूर होना चाहिए। फैली हुई बुराई तो मिट जाएगी लेकिन, विचार सभी का कोहिनूर होना चाहिए। कांटा मुझे चुभे या चुभे किसी और को, ज़ख्म को भरने का दस्तूर होना चाहिए। बात कोई भी हो बात तो बात है लेकिन, तुम्हें बात कहने का शऊर होना चाहिए।  यक़ीन के बंधन तो कई बार बिखर गए,  नफ़रतों का घमंड भी चूर होना चाहिए। चला ही गया है अगर इंसाफ़ के मन्दिर,  फैसला आदमी को मंज़ूर होना चाहिए। झूठ से परहेज़ ही काफी नहीं  "ज़फ़र", सच्चाई की खुशबू का नूर होना चाहिए। ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र एफ-413, कड़कड़डूमा कोर्ट, दिल्ली -32 zzafar08@gmail.com

विचार सभी का कोहिनूर होना चाहिए

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इंसानियत को बांटना दूर होना चाहिए, वसुधैव-कुटुंबकम् मशहूर होना चाहिए। फैली हुई बुराई तो मिट जाएगी लेकिन, विचार सभी का कोहिनूर होना चाहिए। कांटा मुझे चुभे या चुभे किसी और को, ज़ख्म को भरने का दस्तूर होना चाहिए। बात कोई भी हो बात तो बात है लेकिन, तुम्हें बात कहने का शऊर होना चाहिए।  यक़ीन के बंधन तो कई बार बिखर गए,  नफ़रतों का घमंड भी चूर होना चाहिए। चला ही गया है अगर इंसाफ़ के मन्दिर,  फैसला आदमी को मंज़ूर होना चाहिए। झूठ से परहेज़ ही काफी नहीं  "ज़फ़र", सच्चाई की खुशबू का नूर होना चाहिए। ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र एफ-413, कड़कड़डूमा कोर्ट, दिल्ली -32 zzafar08@gmail.com

जो सोचा नहीं था ऐसा कमाल कर दिया,

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  जो सोचा नहीं था ऐसा कमाल कर दिया, मेरे मुल्क को और भी बदहाल कर दिया। वो रह गया है फंसकर अपने ही जाल में, परिंदे ने शिकारी का क्या हाल कर दिया। ये गांधी का युग नहीं अलग बात है मगर, उसने तो आज दूसरा भी गाल कर दिया। उसने चार साल का लॉलीपॉप खिलाकर, बेरोज़गारी को और मालामाल कर दिया। तुम्हारी थाली में ना रहेंगी अकेली रोटियां, जादूगर ने चटनी का नाम दाल कर दिया। सत्यवादी तो लाइन में दम तोड़ गए मगर, भ्रष्टाचारी रहनुमाओं को बहाल कर दिया। उससे और कितनी उम्मीद रखोगे 'ज़फ़र', इकतीस दिसम्बर को नया साल कर दिया। ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र एफ-413, कड़कड़डूमा कोर्ट, दिल्ली -110032 zzafar08@gmail.com

विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष कविता)

  विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष कविता) संजीव-नी। पर्यावरण संरक्षण। पर्यावरण संरक्षण हमारी जिम्मेदारी, न्यारी धरती प्यारी, शुद्ध हवा भी प्यारी, जिंदगी हमारी न्यारी। आओ कुछ वृक्ष लगाएं, इस धरा को बचाएं, अपने कर्मों से सजाएं, पर्यावरण को बचाएं। जिस पर्यावरण ने हमें दिया है, जीवन इतना प्यारा, भव संसार इतना न्यारा, निर्झरिणी नदिया पोखर से जल हम तक आता, एहसान मंद है पूरा का पूरा संसार सारा। स्वच्छ हवा में हम लेते हैं सांस, शुद्ध जल से बुझती हमारी प्यास पर्यावरण हमारी जिंदगी की आस, हम शुद्ध रखे हवा पानी आसपास। हम स्वार्थी हो चुके कितने, कल कारखाने बना दिए इतने, काटकर जंगल हमने बेच दिए न जाने पेड़ कितने। एयर,कंडीशनर,कूलर और स्कूटर, कार ,वायुयान प्रकृति और पर्यावरण की खत्म कर दी सब ने जानl अब जीव ,जंतु, वनों और मानव जाति को हमें इन विसंगतियों से बचाना है, हमे पर्यावरण पूरा बचाना है। शपथ पूर्वक प्रण लेते हैं पूरे मानव जीवन में सौ सौ वृक्ष हम लगाएं , इस धरा को स्वर्ग बनाएं। संजीव ठाकुर, रायपुर छत्तीसगढ़, 9009 415 415
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 ताज़गी से जो रखते थे रिश्तेदारियां,  लेने लगे हैं देखिए वो भी उबासियां। उन्हें उम्र ने ऐसे सफ़र पर ला दिया, ज़िन्दगी में रदीफ़ बचा ना क़ाफिया।  जो लोग थे अपने छोड़कर चले गए, क़दमों के सांचे में रह गया हाशिया।  छाले जो पड़ गए, होता नहीं सफ़र, बहुत दूर चली गईं कश्मीरी वादियां।  वो पत्थर नहीं है कि पिघल जाएगा, मत कीजिए आंसुओं की बर्बादियां। नौसीखिए मंज़िल को पा गए मगर, लड़खड़ाती रहीं मेरी समझदारियां। चिड़िया थी हवा में उड़ गई लेकिन, सोचा ना सफ़र में मिलेंगी आंधियां। हिलती हैं जब भी तस्वीर बनाती हैं, उठाकर ले जाओ सारी निशानियां। मुफ़्त में बेच डाली हैं हसरतें तमाम, वो कहां से देंगे ज़फ़र तहबज़ारियां। ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र एफ-413, कड़कड़डूमा कोर्ट, दिल्ली-110032 zzafar08@gmail.com

टूट रहे परिवार !

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----------------------------- -- बदल गए परिवार के, अब तो सौरभ भाव ! रिश्ते-नातों में नहीं,  पहले जैसे चाव !! टूट रहे परिवार हैं, बदल रहे मनभाव ! प्रेम जताते ग़ैर से, अपनों से अलगाव !! गलती है ये खून की, या संस्कारी भूल ! अपने काँटों से लगे, और पराये फूल !! रहना मिल परिवार से, छोड़ न देना मूल ! शोभा देते हैं सदा, गुलदस्ते में फूल !! होकर अलग कुटुम्ब से, बैठें गैरों पास ! झुँड से निकली भेड़ की, सुने कौन अरदास !! राजनीति नित बांटती, घर-कुनबे-परिवार ! गाँव-गली सब कर रहें, आपस में तकरार !! मत खेलों तुम आग से, मत तानों तलवार ! कहता है कुरुक्षेत्र ये, चाहो यदि परिवार !! बगिया सूखी प्रेम की, मुरझाया है स्नेह ! रिश्तों में अब तप नहीं, कैसे बरसे मेह !! बैठक अब खामोश है, आँगन लगे उजाड़ ! बँटी समूची खिड़कियाँ, दरवाजे दो फाड़ !! विश्वासों से महकते, हैं रिश्तों के फूल ! कितनी करों मनौतियां, हटें न मन की धूल !! सौरभ आये रोज ही, टूट रहे परिवार ! फूट कलह ने खींच दी, आँगन बीच दिवार !! --सत्यवान 'सौरभ'   सत्यवान  ' सौरभ' ,  रिसर्च स्कॉलर ,  कवि , स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभ