बरेली कैंट विधानसभा के चुनावी समीकरणों पर ग़ौर करें तो सपा, बसपा और कांग्रेस के मुस्लिम प्रत्याशी के पक्ष में नहीं हैं समीकरण।

 रिपोर्ट-मुस्तकीम मंसूरी 

बरेली, आगामी विधानसभा चुनाव 2027 में कैंट विधानसभा क्षेत्र के समीकरण मुस्लिम चुनावी योद्धाओं के पक्ष में ना होकर ग़ैर मुस्लिम चुनावी योद्धाओं के पक्ष में नज़र आ रहे हैं यह मानना है राजनीतिक चुनावी विश्लेषकों का क्योंकि कैंट सीट में जातीय समीकरण ग़ैर मुस्लिम प्रत्याशी के पक्ष में होने के कारण राजेश अग्रवाल अपनी परंपरागत सीट को छोड़कर वर्ष 2012 में कैंट सीट पर आ गए थे,


तभी से  इस सीट पर भाजपा ने जितना शुरू किया। वर्ष 1977 से पहले इस सीट पर जनसंघ से 1967 में रामा बल्लभ चुनाव जीते थे, और वर्ष 1974 में बादाम सिंह भी जनसंघ से ही चुनाव जीते थे। इस तरह कैंट सीट से दो बार जनसंच जीती थी, लेकिन भाजपा कैंट सीट से 2012 में पहली बार चुनाव जीती थी। कैंट सीट पर अप्रैल 1957 व 1962  में कांग्रेस से मोहम्मद हुसैन चुनाव जीते, वही वर्ष 1967 में जनसंघ ने कांग्रेस को हराया, और फरवरी 1969 में पहली बार कांग्रेस से अशफाक अहमद चुनाव जीते परंतु 1974 में कांग्रेस फिर जनसंघ से चुनाव हार गयी, लेकिन वर्ष 

1977 व वर्ष 1980 में कांग्रेस से अशफ़ाक अहमद लगातार दो चुनाव जीते, परंतु मार्च 1985 में कांग्रेस ने अशफ़ाक अहमद की जगह उनके भाई रफीक अहमद को कैंट सीट से चुनाव में उतारा इस तरह कैंट सीट पर चुनाव जीतकर रफीक अहमद ने कैंट सीट को कांग्रेस के खाते में बरकरार रखा। वहीं दिसंबर 1989 में पहली बार जनता दल से प्रवीण सिंह ऐरन कैंट सीट से चुनाव जीते, जून 1991 में कांग्रेस के टिकट पर इस्लाम साबिर ने प्रवीण सिंह ऐरन को चुनाव हराकर पहली बार विधायक बने, वही दिसंबर 1993 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे इस्लाम साबिर को समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़कर प्रवीण सिंह ऐरन ने इस्लाम साबिर को चुनाव हराकर कैंट सीट पर दूसरी जीत हासिल की, परंतु अक्टूबर 1996 में एक बार फिर सपा के टिकट पर चुनाव लड़कर अशफ़ाक अहमद ने प्रवीण सिंह ऐरन को हराकर अपना आखिरी चुनाव जीता। परंतु फरवरी 2002 में

शहज़िल इस्लाम कैंट से पहली बार निर्दलीय विधायक चुने गये। मई 2007 में बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर कैंट सीट से पहली बार वीरेंद्र सिंह विधायक चुने गये। परंतु मार्च 2012 में पहली बार भाजपा से कैंट सीट पर राजेश अग्रवाल ने चुनाव  जीतकर कैंट सीट पर भाजपा का परचम लहराया, वही मार्च 2017 में दोबारा राजेश अग्रवाल ने कैंट सीट पर भाजपा का कब्जा बरकरार रखा। परंतु मार्च 2022 में भाजपा ने राजेश अग्रवाल की जगह संजीव अग्रवाल को कैंट सीट से प्रत्याशी बनाया संजीव अग्रवाल ने कैंट से जीत कर भाजपा का तीसरी बार कैंट सीट पर परचम लहराया। इस तरह साल 2008 के परिसीमन से पहले बरेली कैंट विधानसभा सीट पर मुस्लिम मतदाताओं का वर्चस्व हुआ करता था, परंतु अब वैश्य मतदाता निर्णायक स्थिति में आ गए हैं, वही वैश्य के साथ अन्य अगड़ी जाति के वोटरों ने समीकरण और ध्रुवीकरण के बल पर भाजपा की स्थिति को मजबूत किया है। लेकिन राजनीति के जानकारों का मानना है कि ऐसे माहौल में कैंट सीट पर किसी भी मुस्लिम प्रत्याशी का चुनाव जीतना मुश्किल कार्य होगा, अगर सपा, बसपा,और कांग्रेस कैंट सीट पर भाजपा को शिकस्त देकर पुनः कैंट सीट पर चुनाव जीतने के सपने को पूरा करना चाहती है तो उन्हें भाजपा के उस वोट बैंक को नज़र में रखकर लोध राजपूत, कायस्थ, वैश्य, ब्राह्मण प्रत्याशी को कैंट सीट पर चुनाव में उतार कर भाजपा के जातीय समीकरण से भाजपा को हराया जा सकता है। परंतु कैंट सीट पर किसी भी मुस्लिम चेहरे को चुनाव में उतारने का मतलब भाजपा की चौथी बार कैंट की जीत को आसन करना होगा।

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