केंद्र की मोदी सरकार द्वारा अधिवक्ता संशोधन बिल 2025 अधिवक्ताओं पर लगाम लगाने की साजिश है।
रिपोर्ट-मुस्तकीम मंसूरी
बरेली, केंद्र की मोदी सरकार अधिवक्ता अधिनियम 1961 में संशोधन कर नया कानून लाने की तैयारी कर रही है, सरकार ने इसके लिए अधिवक्ता संशोधन बिल 2025 का ड्राफ्ट तैयार कर लिया है। केंद्र सरकार के इस कदम से अधिवक्ता आक्रोशित क्यों है। आईए जानते हैं
अधिवक्ता संशोधन अधिनियम 2025 का विरोध क्यों जरूरी है?अधिवक्ता अधिनियम, 1961 में संशोधन ( अधिवक्ता संशोधन बिल 2025) के खिलाफ अपनी बात रख रहा हूँ। यह अधिनियम वकीलों के संवैधानिक अधिकारों को कमजोर करता है और उनकी आवाज़ को दबाने का प्रयास करता है। आइए इसे सरल भाषा में समझते हैं कि यह बिल क्यों गलत है और इसका विरोध क्यों जरूरी है।
1- वकीलों की आवाज़ को दबाने का प्रयास
इस अधिनियम के तहत वकीलों को कोर्ट के कामकाज से हड़ताल या बहिष्कार करने पर रोक लगाई गई है (धारा 35A)। यह प्रावधान वकीलों के संवैधानिक अधिकार (अनुच्छेद 19 - अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अनुच्छेद 21 - जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) का हनन करता है।
वकीलों को अपनी मांगों और समस्याओं को उठाने के लिए हड़ताल या बहिष्कार एक महत्वपूर्ण हथियार होता है। इसे छीन लेना उनकी आवाज़ को दबाने जैसा है।
2 - अनुचित जुर्माने का प्रावधान
इस अधिनियम में वकीलों पर 3 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाने का प्रावधान है (धारा 35)।
यह जुर्माना वकीलों के पेशेवर आचरण को लेकर है, लेकिन इसे लागू करने का तरीका पक्षपातपूर्ण हो सकता है।
इससे वकीलों पर अनावश्यक दबाव बनेगा और उनकी स्वतंत्रता प्रभावित होगी।3 - झूठी शिकायतों पर जुर्माना, लेकिन वकीलों के लिए कोई सुरक्षा नहीं
अगर कोई शिकायत झूठी या फ़िजूल पाई जाती है, तो शिकायतकर्ता पर 50,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है (धारा 35)। हालांकि, अगर वकील के खिलाफ झूठी शिकायत दर्ज की जाती है, तो उसके लिए कोई सुरक्षा नहीं है। यह एकतरफा और अन्यायपूर्ण है।
4 - वकीलों को तुरंत निलंबित करने का अधिकार
बार काउंसिल ऑफ इंडिया को यह अधिकार दिया गया है कि वह किसी भी वकील को तुरंत निलंबित कर सकती है (धारा 36)।
- यह प्रावधान वकीलों के खिलाफ दुरुपयोग को बढ़ावा दे सकता है। बिना उचित जांच के किसी को निलंबित करना अन्यायपूर्ण है।
5 - न्याय प्रणाली में वकीलों की भूमिका को कमजोर करना
- वकील न्याय प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उनके बिना न्याय प्रक्रिया अधूरी है।
- इस अधिनियम के तहत वकीलों को अनुशासनात्मक कार्यवाही का डर दिखाकर उनकी स्वतंत्रता को कमजोर किया जा रहा है। यह न्याय प्रणाली के लिए खतरनाक है l
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