संत शिरोमणि, युग सृष्टा, महामानव, समतावादी, ज्ञानमार्गी शाखा के संत रविदास जी महाराज के जन्म दिवस 12 फरवरी 2025 पर विशेष : -
भारत अध्यात्मिक, सांस्कृतिक, दार्शनिक अनेकों पंथ, सम्प्रदायों, सूफी, फकीरों, भक्ति मार्गी, ज्ञानमार्गी, योगमार्गी, कर्ममार्गी संतों का देश है, जब-जब देश, समाज में अन्धविश्वास, पाखंड, रुढ़िवाद, अंधभक्ति, अंधश्रद्धा, अन्धआस्था, अहंकार, असमानता, छुवाछूत, ऊँचनीच, शोषण, अन्याय, अनाचार, जैसे अवगुण से मानव जाति तिलमिला रही होती है, तो कोई न कोई महामानव का जन्म प्रकृति प्रदत्त होता है, वह समाज को अपने उदात्त गुणों, निर्मल मन से प्रेरणा और सन्देश देकर समाज में निर्भीकता, स्वाभिमान और सम्मान पूर्वक जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त करता है |
संत शिरोमणि रविदास जी ने अपनी प्रतिभा, त्याग, तपस्या, सत्य, साधना से दबे, कुचले, प्रताड़ित, शोषित, पीड़ित, दलित समाज को निर्भीकता पूर्वक साहस, आत्मसम्मान, आत्मनिर्भरता का मार्ग दिखा मेहनत, लगन से जीविका कमाने के लिए प्रेरित किया, वह स्वयं, जूता बना विक्रय कर अपनी गृहस्थी चलाते थे |
संत रविदास असमानता पर आधारित जाति व्यवस्था, कर्मकांड, मूर्ति पूजा, वर्णव्यवस्था, रुढ़िवाद, पुरोहितवाद का घोर विरोध करते हुए प्रवचनों, स्वरचित पदों के माध्यम से जाति, धर्म के ठेकेदारों को ललकारते हुए कहा है कि :-
“जन्म, जात न पूछिए, का जात अरु पात | रविदास पूत सब प्रकृति के, कोऊ नहीं कुजात ||
जात, पात के फेर मेहि, उरझि रहइ सब लोग | मानवता को खात हइ, रविदास जात का रोग ||
जाति न पूछो साधु की पूछ लीजिए ज्ञान | मोल करो तलवार का पड़ी रहय जो म्यान” ||
संत रविदास ने सद्कर्म करने पर बल देते हुए दुष्कर्म, काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार से दूर ह्रदय में ज्ञान का प्रकाश जलाकर समता, समानता, बंधुता, सत्य, त्याग, करुणा हर प्राणी में व्याप्त हो, जन-जन में उपदेश देने का आजीवन कार्य करते रहे, जिससे समाज में सद्भाव, भाईचारा, प्रेम, सहयोग की भावना पुष्पित और पल्लवित हो सके, उनका कहना था कि :-
“पंच दोष तजि जो रहई, संत चरण लवलीन | रविदास तेहि नर जानई, उंचई अरु कुलीन” ||
संत शिरोमणि रविदास का जन्म 1376 ईस्वी में माघ पूर्णिमा के दिन पिता संतोष, माँ करमा देवी की गोद में वाराणसी में हुआ था, उनकी माता धार्मिक प्रवृति की महिला, पिता का बड़ा चमड़े का व्यवसाय था, संत रविदास में बाल्यकाल से ही मन में वंचित, कमजोर वर्ग के प्रति करुणा, दया का भाव था, वह उनकी दशा देख द्रवित हो जाया करते थे, उनके पिता जी उनके द्वारा जरूरतमंद को हर तरह की सेवा करने तथा जूते भी दान कर देने के करण काफी नाराज रहते थे, उन्होंने उनका विवाह कम उम्र में इसलिए कर दिया था कि गृहस्थ जीवन में फंसकर वह मोह-माया में अपने परिवार के लालन-पालन में लग जायेगा, लेकिन हुआ इसका उल्टा संत रविदास जैसे पहले संतों की संगत में रहते, समाज के कमजोर वर्गों की पीड़ा का अनुभव करते हुए वस्त्र, अन्न, धन का वितरण करते रहते, उनके इस पुनीत कार्य को उनके पिता न समझ, उन्हें घर से निकाल दिया| वह अपनी पत्नी के साथ झोपड़ी में रह कठिन परिश्रम कर जीविका अर्जित करते, स्वय उसका उपभोग करते, तथा वंचित, प्रताड़ित वर्ग और संत महात्माओं की भी सेवा करते, उनका लक्ष्य बड़ा क्रान्तिकारी, समाज सुधार, राष्ट्रीय एकता का था|
संत रविदास का मानना था कि मानव जन्म से महान नहीं होता, बल्कि अच्छे कर्म, त्याग, तपस्या, बलिदान, संतोष, संयम, सद्भाव, प्रेम से अध्यात्मिक अनुभवपूर्ण ज्ञान से महान बनता है, उनका कहना था कि :-
“रविदास ब्राह्मण मति पुजिए, जउ होवै गुणहीना | पुजहि चरण चंडाला के, जउ होवै गुनप्रवीना” ||
संत रविदास में विनम्रता, त्याग, तपस्या, निष्काम कर्म, मन की निर्मलता जैसे उदात्त गुण विद्यमान थे, वह समाज सेवा की साक्षात् प्रतिमूर्ति, ज्ञानमार्गी शाखा के उच्च कोटि के संत थे, उन्होंने लोगों को आजीवन समता, समानता, बंधुता, एकता, के साथ अध्यात्मिक ज्ञान तथा कर्तव्य पथ पर चलने के लिए प्रेरित किया |
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वह देश के कोने-कोने में भ्रमण कर अस्पृश्यता, जाति-पांत, ऊँच-नीच, हठधर्मिता, अंधश्रद्धा, झूठी आस्था, अन्धविश्वास, कर्मकांड, पाखंड, मूर्तिपूजा के समूलनाश के लिए जीवन भर लगे रहे, देश, समाज और व्यक्ति को उद्वेलित करते रहे, धर्म के ठेकेदारों, रुढ़िवादियों, कुरीतियों, भ्रम फ़ैलाने वालों से संघर्ष निर्भीकता पूर्वक करते हुए उन्होंने लोगों को अपने प्रवचन में बताया कि तिलक, धार्मिक भेषभूषा धारण करना, माला आदि वाह्य पाखंड से अधिक नहीं है, कर्मकांड निरर्थक है, निर्मल मन, आतंरिक ज्ञान, सद्कर्म, भक्ति और प्रेम, करुणा और दया ही मानव को ऊंचाई पर पहुंचाते है, पाखंड और आडम्बर फ़ैलाने वालों को ललकारते हुए रविदास ने कहा है कि :-
“माथे तिलक हाथ जप माला, जग ठगने को स्वांग बनाया |
मारग छाडि, कुमारग डहकै, साँची प्रीति बिन राम न पाया” ||
उन्होंने कहा है कि :-
“देता रहे हजार बरस, मुल्ला चाहे अजान |
रविदास खुदा नह मिल सकई जौ, लौं मन शैतान” ||
संत रविदास जी ने सैकड़ों वर्ष पहले मानव समाज को जो प्रेरणा दायक मार्ग दिखाया, 21 वीं सदी में हम उस मार्ग से भटक गये है, आज समाज में पाखंड, नफ़रत, असहिष्णुता बढ़ रही है, कर्मकांड, रुढ़िवाद, कुरीतियाँ, दिखावा बढ़ता जा रहा है, धर्म का स्थान अधर्म, अशिक्षा, अज्ञान, अन्धकार ने ले लिया है, लोग दिग्भ्रमित है, गरीबी, भूख, पीड़ा, दर्द, अशिक्षा बढती जा रही है, धार्मिक स्थल पर्यटन के नाम पर पिकनिक स्थल बन रहे है, यदि हमें समाज, देश में एकता, सद्भाव, भाईचारा, समतामूलक समाज बनाना है तो संत शिरोमणि रविदास महराज के ज्ञान के प्रकाश को फैलाना होगा, जिस ज्ञान को मीरा ने ग्रहण किया, राज्य छोड़ मानव कल्याण में लग गयी, संत शिरोमणि रविदास का महत्त्व इस बात से परिलक्षित होता है, कि गुरुग्रंथ साहिब में 40 पद ज्ञानवर्धन के लिए समाहित किये गये| जो सेवा और सम्मान की प्रेरणा देते
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