आखिर क्यों? हमें महापुरुषों की जीवनी पढ़नी चाहिए, आदर्श सिद्धांतों को पढ़ाना चाहिए और पढ़े लिखें अच्छे लोगों को अपना दोस्त बनाना चाहिए।
रिपोर्ट-मुस्तकीम मंसूरी
दुनिया में ग़रीबी और अमीरी न ये मोहब्बत के पैमाने हैं न नफ़रत के और न ही इज़्ज़त के....
बल्कि दुनिया में जिसने सबसे ज्यादा मोहब्बत और इज़्ज़त पाई उसने अपनी जिंदगी ज़ाहिरी ग़रीबी में ही गुज़ारी...पैमाना है कर्म,किरदार और व्यवहार अगर इन तीनों को खुशबूदार बना लिया जाए तो स्थाई मोहब्बत और इज़्ज़त मिलेगी जो हमारे मरने के बाद भी ख़त्म नहीं होगी!
. बात ये है कि समाज में एक ग़रीब आदमी को लोग इज़्ज़त नहीं देते उसकी बात नहीं मानते वगैरा-वगैरा... दूसरी तरफ एक पैसा वाला जिसे आम तौर पर अमीर कहा जाता है लोग उसे इज़्ज़त देते हैं उसकी बात मानते हैं बगैर यह जाने कि ये पैसा कहां से लाया है, इसके कर्म कैसे हैं, दुनिया में इसकी भूमिका क्या है, समाज और दोस्तों के प्रति इसका व्यवहार कैसा है?... अब यहां पर गरीब आदमी दुखी होता है और उसी की तरह बनना चाहता है जबकि अगर इसके कर्म ,किरदार और व्यवहार अच्छा है तो इसे अपने ऊपर गर्व करना चाहिए!
अव्वल तो यह सिद्धांत इस्लाम में है ही नहीं..."यहां तो बताया गया है कि अगर तुमने पैसे की वजह से किसी को इज़्ज़त दी तो अपना ईमान खो दिया!"
लेकिन ख़ासकर भारतीय समाज में यह सोच स्थापित हो चुकी है कि पैसा है तो सब कुछ है पैसे से इज़्ज़त मिलती है और पैसा ही कामयाबी है!
मैं फिर उन्हीं दोनों आदमियों पर लौटूंगा अगर उस गरीब आदमी के कर्म अच्छे हैं ,किरदार (भूमिका) समाज सुधारात्मक, इल्मी और सकारात्मक (कुछ कर गुजरने वाली) है तथा व्यवहार स्पष्ट, सच्चा, वादा परस्त ,दूसरों के काम आने वाला, प्रेम से भरा है, दूसरों पर ख़र्च करने वाला है ...तो वास्तव में लोग इसी से मोहब्बत करेंगे, इसी को इज़्ज़त देंगे... और यदि वह पैसे वाला आदमी इन तीनों पैमानों में ठीक उल्टा है तो भले ही लोग स्वार्थ में, लालच में, भय में उसके सामने झूठी मोहब्बत और इज़्ज़त दें, दोस्ती का दावा करें ..वास्तव में वह न तो मोहब्बत के पात्र है, न इज़्ज़त के और न ही दोस्ती के लायक़!
दुनिया में कामयाब वो है जिसपे लोग विश्वास करते हैं... और जो विश्वसनीय है वह सच्चा, वफ़ादार, वादापरस्त, साफदिल,मोहब्बत करने वाला, दूसरों के काम आने वाला, दूसरों पर खर्च करने वाला जरूर होगा फिर वही आखिरत में भी कामयाब होगा!
वास्तव में साफ़दिल आदमी ही दूसरों से मोहब्बत कर पाता है वह जिससे मोहब्बत करता है उसके प्रति गुस्से का भी इज़हार करता है उसे हमेशा सुधारना चाहता है क्योंकि वह उसे अच्छे लोगों की लिस्ट में देखकर उसके चेहरे पर मुस्कान सजाना चाहता है ,कम अक्ल लोग मुंह पर साफ़ बोल देने वाले और गुस्सा करने वाले(गुस्सा ज़ाहिर करने का तरीक़ा यह है कभी वह मुंह पर कुछ बोल देगा तो कभी स्वयं ख़ामोश और दुखी हो जाएगा, ऐसे आदमी को हमेशा मना लेना चाहिए, उसे विश्वास में लेने के लिए हमेशा उससे सच बोलना चाहिए और उसकी बात मानना चाहिए, उसे दूसरों से ज्यादा तवज्जो देना चाहिए)आदमी से नाराज़ हो जाते हैं और अपने वास्तविक दोस्त को दुखी करके अपने जीवन से एक वफ़ादार आदमी को खो देते हैं... हमें लोक व्यवहार के सभी सिद्धांतों को सीखना चाहिए और इस्लाम इन्हीं सिद्धांतों को स्पष्ट करता है!
अब सवाल यह है कर्म ,किरदार और व्यवहार ये तीनों सुधरेंगे कैसे?
पहली बात तो इन तीनों का कुछ संबंध हमारी नस्ल (खून)से भी होता है इस नस्ल वाले हिस्से को यानी नैसर्गिक हिस्से को अर्जित हिस्से से दबाया भी जा सकता है ...शिक्षा इसी का नाम है और शिक्षा वास्तव में इन्हीं तीन चीजों को सुधारने के लिए ही दी जाती है इन तीनों को सुधारने में हमारे खान-पान यानी हलाल रिज्क,हमारी संगत (दोस्ती)और गुरुओं का बहुत बड़ा असर होता है इससे हमारी सोच बदलती है सोच से ही कर्म अच्छे होते हैं ,किरदार अच्छा होता है, व्यवहार अच्छा होता है!... हमें महापुरुषों की जीवनी पढ़नी चाहिए ,आदर्श सिद्धांतों को पढ़ना चाहिए और पढ़े लिखे अच्छे लोगों को अपना दोस्त बनाना चाहिए ,उनकी संगत करना चाहिए और ऐसे दोस्त या आदमी से लोक व्यवहार और नीति शास्त्र के बारे में या जीवन से जुड़े मामलों के बारे में पूछना चाहिए जिस पर विद्वान विश्वास करते हों,जिसे विद्वानों का समर्थन प्राप्त हो अगर इस व्यक्ति का प्यार और साथ मिल जाए तो निश्चित रूप से हमारे कर्म ,किरदार और व्यवहार तीनों में सुधार आ सकता है....
इसलिए हमें अपना आदर्श महापुरुषों को ही बनाना चाहिए और सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने कर्म, किरदार और व्यवहार को सुधारना चाहिए!
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
9599574952