आखिर यह हालात पैदा क्यों हुए? आखिर इसका ज़िम्मेदार कौन है? यह प्रश्न विचारणीय है, ख़ासकर भारतीय मुसलमानों के लिए।
रिपोर्ट-मुस्तकीम मंसूरी
आखिर ये हालात पैदा क्यों हुए.. मैं अंग्रेजों की वापसी के बाद की बात करता हूं, देश तीन हिस्सों में बट गया...दो देशों में मुसलमान बहुसंख्यक हैं और एक में अल्पसंख्यक जहां बहुसंख्यक हैं वहां उनका अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार कैसा है और वहां के अल्पसंख्यक इस बहुसंख्यक समाज के प्रति कैसा रुख इख्तियार किए हैं... और जहां मुसलमान अल्पसंख्यक हैं वहां उसका व्यवहार (सियासी और समाजी) बहुसंख्यकों के प्रति कैसा है?...(इस बात को आप सोचें और निष्कर्ष निकालें)
हम अपने गुरुजनों से प्रेरित होकर हिंदुस्तान की सियासी और सामाजी सोच व हालात बदल देने वाले विचार प्रकट कर रहे हैं! .. और करते आए हैं! हम मुसलमानों की सियासी, सामाजी और मज़हबी तीनों गलतियों पर संक्षिप्त प्रकाश डालने की कोशिश करेंगे और फिर हमें क्या करना चाहिए ये बताने की भी कोशिश करेंगे...
1. सियासी ग़लती
उस कांग्रेस की जो भारत में धर्म और जातिवाद फैलाने की जननी है उसी क्रम में जिसने कई संगठनों को अपनी कोख से पैदा किया, उसी कांग्रेस ने उस वक्त के ब्रिलिएंट मुसलमान जो मौलाना के नाम से मशहूर हैं को अपना यस मैन बना रखा था उनकी गलतियों ने मुसलमानों का सियासी क़त्ल करवा दिया ,उनकी सोच को खत्म करने की कोशिश की.. उत्तर भारत के मुसलमान ने पूरी तरह से उनकी बात मानी जिसका परिणाम आप खुद देख ले...
उसके बाद चंद लोगों को छोड़ दें तो जितने मुस्लिम नेता हुए हैं सब के सब मफादपरस्त और गलत दिशा में चलने वाले ही रहे हैं!
जो पिच सामने वाला बनाता गया लोग आज भी उसी नफरती पिच पर खेल कर उनके ही नंबर बढ़ा रहे हैं और खुद मुसलमानों के हमदर्द होने का ढोंग कर रहे हैं!
आज तक किसी मुसलमान ने अपने जाती मफाद की कुर्बानी देकर सामाजी मफाद के लिए कोई पार्टी, संगठन आदि नहीं बनाया न ही आंदोलन किया!
मैं बीजेपी का उदाहरण देता हूं उस पार्टी को जिन लोगों ने बनाया था उनमें से दर्जनों लोगों को पार्टी को ऊपर उठाने के लिए अपने मफाद की कुर्बानी देनी पड़ी उस पार्टी पर किसी एक व्यक्ति या परिवार ने कोई कब्जा नहीं किया!
इस वक्त भी हम नफरत का जवाब नफरत से ही देना चाह रहे हैं.. और जिन तथाकथित सेकुलर पार्टियों की गुलामी कर रहे हैं सबसे ज्यादा हमें बर्बाद करने में उन्हीं का हाथ है!
देश में जो एक मुस्लिम नेता हैं उनकी पार्टी मुसलमानों की पार्टी नहीं बल्कि उनकी स्वयं की पार्टी है... क्या वो कभी अपने जाती मफाद की कुर्बानी दे पाएंगे और नौजवानों की कैडरिंग पर अपना सब कुछ लुटा पाएंगे?.. लोगों को धैर्य, संयम और शरीयत का पाठ पढ़ा पाएंगे... अगर ऐसा नहीं तो उन्हें इख़्तियार नहीं कि मुसलमानों का नेता खुद को माने!
अब क्या करें?
मुसलमान अपनी गलतियों से सीखते हुए फिर उन्हीं का आशीर्वाद प्राप्त करें जिनके आशीर्वाद से आज तक हिंदुस्तान की हुकूमत चल रही है..
फिर ईमानदार और त्याग करने वाले लोगों की एक सियासी जमात बनाएं ,अपना एक नेता चुने और उसके पीछे चल पड़ें..
हजरत मुहम्मद स .और खुलफा ए राशीदीन की सियासी जिंदगी (राजनीतिक नीतियों और व्यवहार) का अनुसरण करें!
ईमानदारी और समर्पण से ऐसा करने पर हिंदुस्तानी हुकूमत की चाभी तुम्हारे कशकौल में होगी!
2. सामाजी गलतियां
रास्ते से पत्थर हटाना ईमान वाले की पहचान बताया गया है हमने अपनी तुलना उनसे कि जिनको खुदा ने खैरुल उम्मत नहीं कहा है जो गलतियां वह करते हैं वही हम करते हैं.. हमने कितनी सामाजिक बुराइयों को ख़त्म करने की कोशिश की? दहेज और बारातियों का जत्था ले जाना उनकी रीति है हमने उसका विरोध करने की बजाय उसे अपनाया ही नहीं बल्कि उनसे भी आगे निकल गए! अब बताओ वो हमसे कैसे प्रभावित हों कैसे प्यार करें?
हमने कोई मिशनरी काम नहीं किया ,लोगों को फायदा पहुंचाने वाले काम नहीं किए ,हम कितने लंगर लगाते हैं, ईमानदारी के पैसों से कितने लोगों को संसाधन मुहैया कराते हैं, हम कितनी अच्छी किताबें लिखकर /खरीदकर समाज में बटवाते हैं!
शराब का पीना ,बनाना, रखना सब मुसलमान के लिए हराम है जिससे ग़ैर मुस्लिम सबसे ज्यादा पीड़ित हैं हमारा कर्तव्य है शराब बंदी के लिए आंदोलन करें आखिर हमने क्यों नहीं किया?
हम तुलना जिस संगठन से कर रहे हैं जिसे रात दिन कोसते हैं उसने इस्लामी सिद्धांतों को अपनाकर दुनिया में अपना लोहा बनवाया है ,लाखों स्कूल खोले हैं.. इसी देश में ईसाइयों के ट्रस्ट द्वारा संचालित हजारों स्कूल ,अस्पताल हैं..
हमारे पास क्या है? हम इन चीजों पर कितनी मेहनत कर रहे हैं हमारे यहां जो पैसा वाले हैं उनकी लाइफ स्टाइल ऐश ओ आराम वाली है वह समाज के लिए कुछ करना ही नहीं चाहते कुछ लोग अब रातों में जागकर गप्पे मारते हैं और दिन में सोने को अपनी शान समझते हैं और तुलना कर रहे हैं त्याग करने वाले लोगों से... और हमसे तो दलित भाई अच्छे हैं जो मिशनरी काम करते हैं सामाजिक काम करने वालों को चंदा देते हैं उनका हौसला बढ़ाते हैं, हम तो टांग खिंचाई करते हैं, उन्हें दिली तौर पर दुखी करते हैं!
अब क्या करें
मिशनरी और सामाजिक काम करने वालों का हौसला बढ़ाएं उन पर खर्च करें, उनका सम्मान करें और साथ दें उनकी बात माने!शराब और दहेज के साथ बारातियों के जत्थे पर विरोध करें और खुद पूर्णतया: त्याग दें!
स्कूल ,अस्पताल ,रेन बसेरा खोलें गरीबों जरूरतमंदों की मदद करें,
समाज में सबसे दोस्ती और मोहब्बत का हाथ बढ़ाएं आपस में एक दूसरे से प्यार करें एक दूसरे का सम्मान करें अपनी गलती मानना सीखें और दूसरे से गलती पर माफी मांगना सीखें, समझौता करना सीखें, सच बोलें, सच्चे और अच्छे लोगों का साथ दें! मतलबी और सिर्फ अपने लिए ही जीने का तरीका न ढूंढे हर रोज यह सोचे कि मैं दूसरों के कैसे काम आ सकता हूं!
सभी पेश इमाम और आलिम सामाजी कामों को बढ़ावा दें ,बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाएं और मुसलमान ईमानदारी, सच्चाई और मोहब्बत की मिसाल कायम करें!
3.मजहबी गलतियां
हमारा खुदा एक हमारी कुरान एक रसूल एक फिर हम इतने बंटे क्यों?
हजरत अली रजि.के दौर में खानाजंगी के बावजूद भी मुसलमान एक ही जमात में नमाज़ पढ़ते थे!
जिस मजहब में सिर्फ मनुष्यों से ही नहीं बल्कि निर्जीव वस्तुओं से भी प्यार करने की बात कही गई है उस मज़हब के मानने वाले लोग अपनी मस्जिदों में बोर्ड लगाकर कहते हैं इसमें फला फला का नमाज पढ़ना मना है!
दुनिया कहां से कहां पहुंच गई हम नमाज़ में कब खड़े होना है पैजामा ,टोपी आदि पर बहस कर रहे हैं! इसका जिम्मेदार कोई एक आदमी नहीं सभी हैं, अल्लाह ने फिरका (ग्रुप) बनाने को मना किया है और सभी को एक जमात (मुस्लिम) कहा है! हम आपस में जले मरे जा रहे हैं!
पूंजीवाद जिसके इस्लाम सख्त खिलाफ़ है मुसलमान पूंजीवाद को सर पे रखे घूम रहा है.. हर जगह पैसा पैसा रटता है पैसे को ही शादी, सम्मान, दोस्ती हर चीज का पैमाना बना लिया है!
बड़े-बड़े आलिम, दारुल उलूम के मालिकों का उद्देश्य दीन फैलाने से ज्यादा पैसा कमाना है!
झूठ बोलना, वादा तोड़ना ,बेईमानी, ठगी, ढोंग ,रियाकारी, जिनाकारी ,भ्रष्टाचार, अमानत में ख़यानत, मिलावटखोरी आदि को हराम करार किया गया है हम कितना दूर है इन चीजों से?
अब क्या करें
धर्म सुधार आंदोलन चलाएं, फिरके ख़त्म कर सिर्फ मुस्लिम बने,जीवन के हर पहलू में हुजूर स.का अनुसरण करें!
इबादत सिर्फ़ रोज़ा , नमाज़ का नाम नहीं बल्कि ख़ुदा और उसके रसूल की हर बात मानना और उसके अनुकरण का नाम है!
जरूरतमंदों, विद्वानों, दीन का काम करने वालों, मुसाफिरों (किसी अच्छे काम की शुरुआत करने वाले या काम करने वाले) पीड़ितों, मजलूमों , बीमारों आदि की मदद करें!
अगर हम 50% भी इस्लाम यानी हुज़ूर की सियासी ,सामाजी और मज़हबी जिंदगी का अनुसरण करने लगें तो वह दिन दूर नहीं जब दुनिया हमें अपना नेता मानकर गले से लगा ले!
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