अगर वक्फ संपत्ति का इस्लामी तरीके से इस्तेमाल होने लगे तो भारत में वक्फ की कमाई से भारत के गरीब मुसलमानों की गरीबी दूर हो सकती है?
रिपोर्ट-मुस्तकीम मंसूरी
एक कड़वा सच, वक्फ प्रॉपर्टीज और मुसलमान?
मस्जिद लाइट ,पंखा, बल्ब ,माइक ,मुसल्ला वजूखाना,इमाम, पानी ,रंगाई पुताई आदि के लिए भीख मांग रही है, हर जुम्मे को वहां खन्न खन्न डिब्बा बजाया जाता है नमाजियों के सामने, चंदे के लिए कभी-कभी बोलियां लगती हैं !..एक आदमी जो ख़ुदा की तलाश में मस्जिद गया है उसके मन में विचार आता है यहां भी तो सब कुछ पैसे पर टिका है या पैसे के लिए ही हो रहा है!.. लेकिन अफसोस दर अफसोस मस्जिद की प्रॉपर्टी के किराए से चंद लोग अपने तोंद पर हाथ फेर रहे हैं ,जलवा काट रहे हैं!मस्जिद की एक दुकान फर्स्ट एलाटी ₹500 में एलाट करा कर ₹5000 किराए पर दूसरे को दे रखा है 4500 रुपए महीने हड़प रहा है और बड़ा दीनदार भी बनता है... मस्जिद के भीख मंगवाने का अगुवाकार वही रहता है!ये हाल है वक्त प्रॉपर्टीज का अरे यह तो अल्लाह का धन है इसका पूरा-पूरा खर्चा मुसलमान के उत्थान के लिए होना चाहिए!.. ये सरासर अमानत में खयानत है जो मुनाफिकत की कंडीशंस में से एक कंडीशन है!
मैं दावे के साथ कहता हूं अगर वक्फ का इस्लामी तरीके से इस्तेमाल होने लगे तो भारत ही नहीं भारत की वक्फ कमाई से दुनिया भर के मुसलमानों की गरीबी तो दूर होगी ही साथ ही ये कौम खैर भलाई के कामों के जरिए दुनिया में नंबर एक हो जाएगी और हर क्षेत्र में कामयाबी हासिल करेगी ,एक विकसित और विश्वसनीय कौम बन जाएगी!उलमा ए सू इतने बेगैरत हैं ये हर काम गैर इस्लामिक तरीके से करते हैं,फिर अल्लाह जब गैरों से काम ले लेता है तो खूब हाय तौबा मचाते हैं...अगर वक्फ संपत्तियों का इस्लामिक तरीके से उपयोग किया जाता तो एक भी मुसलमान न गरीब होता, न अशिक्षित, न दवा के अभाव में मरता ,न ही कोई लड़की कुंवारी बैठी होती..लेकिन इसपे इस्लाम का चोला ओढ़े माफिया कब्जा किए बैठे हैं और खूब मुर्ग मुसल्लम उड़ाते हैं... उन्हें अपने ऐश ओ आराम से मतलब है कौम चाहे भूखे मर जाए.. उनकी कथनी करनी में बहुत अंतर है!... वक्फ संपत्तियों का सही इस्तेमाल हो, इसका बोर्ड निष्पक्ष और पारदर्शी हो, इसके चुनाव की प्रक्रिया गांव स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर होनी चाहिए.. प्रत्येक गांव में प्रत्यक्ष चुनाव से सदस्य/ अध्यक्ष चुने जाएं ,गांव के सदस्य /अध्यक्ष जिले का अध्यक्ष चुनें,जिले के अध्यक्ष राज्य अध्यक्ष चुनें,राज्य अध्यक्ष मिलकर राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव करें!.. और इस पूरी प्रक्रिया को और इस निकाय के चुनाव प्रबंधन और संरक्षण की जिम्मेदारी सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों की ही हो दूसरों का हस्तक्षेप असंवैधानिक होगा...इस पूरी बॉडी को आधुनिक व कंप्यूटरीकृत किया जाए!
सरकार की नजर वक्फ माफियाओं पर पड़ी है और वह संशोधन बिल लेकर आई है जो स्वागत योग्य है! परंतु बड़ी विनम्रता के साथ में कहना चाहूंगा इसमें दो बड़ी कमियां है जो किसी की स्वतंत्रता का हनन करती हैं, इसमें जिलाधिकारी को जिम्मेदारी देना और अन्य धर्म के लोगों को शामिल करने की सोच गलत है!.. अगर सरकार वक्फ प्रॉपर्टीज वक्फ माफियाओं से मुक्त कराकर उसके संचालन की जिम्मेदारी ईमानदार मुसलमानों को दे दे जो इस्लामिक तरीके से इसका उपयोग करें तो निश्चित रूप से सरकार धन्यवाद की पात्र बनेगी! दूसरी सरकारें ऐसी हिम्मत इसलिए नहीं कर सकती थीं क्योंकि आज़ादी के बाद से लगातार उन्होंने मुसलमानों के वोट से ही राजनीति की है और उनका वोट लेने के लिए तथाकथित मुसलमान नेताओं और उलमा ए सू की नाराज़गी वह कभी नहीं लेना चाहती थीं, उनका मक़सद सभी मुसलमानों का कल्याण नहीं बल्कि बंधुआ मजदूर बनाना रहा है, जो कुछ मफादपरस्त मुसलमानों को विश्वास में लेकर ही संभव है!.. हालांकि यह भी उसी पेड़ की एक शाखा है मक़सद इसका भी बहुत साफ नहीं है बस ऐसे ही है कि एक हमारा खुला दुश्मन है और एक बंद दुश्मन इंसानी वसूलों के मुताबिक बंद दुश्मन ज्यादा ख़तरनाक है ,ज्यादा गुनहगार भी!.. लेकिन हमें तो सबसे ज्यादा नुकसान हमारे अपनों ने ही पहुंचाया है, हमारा हिस्सा तो वही खा रहे हैं!.... अभी जो विपक्ष की भूमिका में हैं वो हर चीज़ का विरोध कर रहे हैं जो किसी के हित में नहीं है उन्हें सोच समझकर कमियों पर ध्यान आकर्षित कराना चाहिए और अच्छी चीजों का स्वागत करना चाहिए!... मंशा साफ नहीं है जुर्म और अत्याचार पर सिर्फ ट्वीट करते है!अगर हम पूरी तरह से शुद्ध इस्लाम पर चलते हों तो सरकार क्यों हमारे मामलों में दखल दे!
लाज़मी है अपने घर को हम साफ सुथरा रखें!
आएगी जब बदबू सरकार दखल देगी ही!
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
9599574952