अल हिंद हॉस्पिटल में डॉक्टर शारिक द्वारा किए गए ऑपरेशन से शाकिर की मौत का जिम्मेदार कौन?

 बेताब समाचार एक्सप्रेस के लिए बरेली से मुस्तकीम मंसूरी की रिपोर्ट।

अल हिंद अस्पताल संचालक द्वारा बार-बार स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी का नाम लेना स्वास्थ्य विभाग की कार्य शैली पर प्रश्न चिन्ह लगाता है।

बरेली के सती पुर चौराहा स्थित अल हिंद अस्पताल में 16 नवंबर 2024 को श्रीमती ज़ोहरा ने अपने पति शाकिर को गाल ब्लेडर के ऑपरेशन के लिए भर्ती किया था, शाकिर का ऑपरेशन डॉक्टर शारिक अहमद द्वारा किया गया, और 5 दिन बाद मरीज शाकिर की छुट्टी कर दी, परंतु शाकिर की लगातार तकलीफ़ बढ़ रही थी, जिसके कारण 10 दिन बाद मरीज


शाकिर दोबारा अल हिंद हॉस्पिटल में फिर से भर्ती हो गया, इस दौरान शाकिर को पीलिया भी हो गया था, अल हिन्द अस्पताल में 1 दिसंबर को दोबारा ऑपरेशन किया गया, दूसरे ऑपरेशन के बाद भी शाकिर की हालत मैं कोई सुधार नहीं हो पाया, और अस्पताल संचालक लगातार शाकिर के परिजनों को आश्वस्त करते रहे कि आपका मरीज ठीक है, परंतु मरीज की हालत लगातार बिगड़ती गई, जिसके बाद अस्पताल संचालक ने मामला बिगड़ता देख मरीज़ शाकिर को हायर सेंटर रेफर कर दिया, हायर सेंटर में शाकिर की आयुष्मान कार्ड में त्रुटि होने के कारण शाकिर का इलाज वहां नहीं हो सका और शाकिर के परिजनों ने शाकिर को दोबारा अल हिंद हॉस्पिटल में भर्ती कराया परंतु समय पर हॉस्पिटल में सही इलाज ना मिलने के कारण 17 दिसंबर 2024 को शाकिर की मृत्यु हो गई, अब इसे डॉक्टर शारिक की ऑपरेशन में लापरवाही माने या अल हिंद हॉस्पिटल के प्रबंधक  की लापरवाही माना जाए, शाकिर के परिजनों का आरोप है कि पहला ऑपरेशन करते समय हमसे अंगूठा लगवा लिया  गया था, परंतु दूसरा ऑपरेशन करते समय अस्पताल प्रबंधक और डॉक्टर ने हमें कोई जानकारी नहीं दी कि हम दूसरा ऑपरेशन कर रहे हैं, वही अस्पताल संचालक से जब मामले की जानकारी लेना चाहि तब अस्पताल संचालक बार-बार स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी का नाम लेते रहे,गौरतलब है कि ऑन कॉल हॉस्पिटलों में ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर ऑपरेशन करके चले जाते हैं, बाकी सारी जिम्मेदारी हॉस्पिटल प्रबंधक और वहां के स्टाफ की होती है, अधिकतर अस्पतालों में अनट्रेंड स्टाफ या अनुभवहीन डॉक्टर मरीज की देखभाल में लगा दिए जाते हैं, जिसका परिणाम शाकिर जैसे मरीजों की मौत की शक्ल में देखने को मिलता है, वही स्वास्थ विभाग की साठ गांठ और संरक्षण पर अस्पतालों में मरीजों की जाने जाती रही हैं, परंतु विभाग के अधिकारियों को जब ऐसी घटनाओं की सूचना दी जाती है, तब एक ही जवाब होता है कि परिजनों से तहरीर दिलवा दीजिए, और अगर कोई परिजन स्वास्थ में तहरीर देता है, तो फिर अधिकारी औपचारिकता निभाने के लिए अस्पताल को कुछ समय के लिए बंद करवा देते हैं, और अस्पताल कुछ समय के बाद फिर चालू हो जाता है, इस तरह अस्पताल संचालकों और स्वास्थ्य विभाग के गठ जोड़ से मानकों के विपरीत  संचालित अस्पतालों में हो रही मौतों का आखिर जिम्मेदार कौन? यह प्रश्न विचारणीय है स्वास्थ विभाग के अधिकारियों के लिए।

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