प्रेस मीडिया और पत्रकारिता को चौथा स्तँभ कहा जाता हैं , लेकिन पत्रकारिता एक ज़िम्मेदारी के साथ साथ जोखिम भरा कार्य भी होता हैं ! वी के बशीर

रिपोर्ट-मुस्तकीम मंसूरी

मुरादाबाद, चौथा स्तंभ या चौथी शक्ति शब्द प्रेस और समाचार मीडिया को संदर्भित करता है!  जिसमें वकालत की स्पष्ट क्षमता और राजनीतिक मुद्दों को तैयार करने की अंतर्निहित क्षमता दोनों शामिल हैं ! इस शब्द की व्युत्पत्ति पारंपरिक यूरोपीय अवधारणा से उत्पन्न होती है ,  जिसमें राज्य के तीन वर्ग शामिल हैं  :-पादरी :- कुलीन वर्ग  :- और आम जन मानक ! लोकतन्त्र के तीन स्तम्भ विधायिका  = कार्यपालिका एवं = न्यायपालिका = संविधान में वर्णित है, लेकिन मीडिया व प्रिंट मीडिया एवं टी वी के बढ़ते दायरे एवं प्रभाव लोकतन्त्र का चौथा स्तम्भ मीडिया लोकतन्त्र कारण इसे कहा जाने लगा है !


पत्रकार ( रिपोर्टर ) उस व्यक्ति को कहते हैं जो समसामयिक घटनाओं ,  लोगों , एवं मुद्दों आदि पर सूचना एकत्र करता है एवं जनता में उसे विभिन्न माध्यमों की मदद से फैलाता है। इस व्यवसाय या कार्य को पत्रकारिता कहते हैं। संवाददाता एक प्रकार के पत्रकार हैं। पत्रकार के पास अधिकार तो बहुत हैं , जैसे अभिव्यक्ति की सवतंत्रता , प्रशन पूछने का अधिकार , सरकार से उसकी नीतियाँ  व कार्यक्रम जानने का अधिकार , सरकार और विपक्ष दोनों को सुनकर जनता के हित में निष्पक्षता के साथ लिखना और दिखाना ज़िम्मेदारी होती हैं ! पत्रकारों को अपनी ख़बर के सूत्र ना बताने का अधिकार हैं  , ( सुप्रीम कोर्ट ) ! आज के वक़्त जिसे देखो हाथ में कैमरा माइक आई डी लिये नज़र आता है , जैसे कि पत्रकारिता कोई कारोबार हैं ! आज अधिकतर युवाओं को देख सकते हैं कि बिना डिग्री के पत्रकार बनकर घूमते मिल जाते हैं ! अगर उनसे एक ऐपलिकेशन लिखने या इंग्लिश में ट्रांसलेट करने को कह दिया जाए तो शायद सवाल करने वाले को ऐसी ऐसी बातों में उलझा देने की कोशिश करते हैं कि सवाल करने वाला कुछ जनता ही नही हों ! एक ज़माना था जब पत्रकारिता का कोई कोर्स नही होता हैं , क्यों कि उस ज़माने में हिंदी ,  उर्दू  , संस्कृत , के माहिर थे , और दिग्गज पत्रकार हुआ करते थे , उनके लिखने से जन जन को सरकार से मिलने वाली सभी योजनाओं का लाभ मिला करता था ! और कुछ इंग्लिश के पढ़ने लिखने वाले थे ! उस वक़्त लिखने वालों की ख़बर को पढ़ने का इंतज़ार सुबह सवेरे से करने लग जाते थे ! आज सब कुछ बदल चूका हैं ! हाँ पत्रकारिता करने के लिये कोई कोर्स करना या डिग्री लेना ही ज़रूरी नही हैं ! शर्त यह हैं कि आपकी सोच सही हों , और अपने आस पास होने वाले बुरे कार्यों को उजागर करना , बुराई के खिलाफ़ आवाज़ उठाना , और साथ ही चुनौतियों से निपटने का साहस भी आपके भीतर हैं तो पत्रकारिता आपके लिये हैं ! हालांकि कुछ संस्थान ऐसे हैं जो डिग्री की माँग करते है! पर उनकी संख्या कम हैं ! अधिकांश जगह जगहों पर अभी भी महनत , हिम्मत , हौंसला , और उसके ख़्यालात को तवज्जो दी जाती हैं ! पत्रकारों पर ख़बर को लेकर किसी ना किसी सड्यंत्र के तहत फ़र्ज़ी मुक़दमा करना उनकी आज़ादी का सिर्फ़ हनन ही नही हैं ,  यह देश के प्रति एक बहुत बड़े सड्यंत्र का भाग हैं ! पत्रकारों को एक जुट हों कर इसका मुक़ाबला करना चाहिए !  पत्रकार ऐसे होते हैं कि वह जान हथेली पर रख कर उस जगह पोंहच जाते हैं जहाँ प्रशासन भी सुरक्षा का पूरा ख़्याल रख कर आगे बढ़ते हैं ! और पत्रकार अपने घर अपनी माँ , बहन , भाई , बच्चों को छोड़ कर सिर्फ़ एक क़लम और कैमरा लेकर निकल जाता हैं ! जबकि उसका भी अपना परिवार होता हैं , लेकिन वह ख़बर के खोजने के जूनून में सबको नज़र अंदाज़ करके उस जगह पोंहच जाता हैं जहाँ  ज़्यादा तमाशबीन

होते हैं ! पत्रकारिता की एहमियत , क़लम का मयार पत्रकार समझते हैं , दलाल क्या समझेंगे कि क़लम का मयार पत्रकारिता की धनक केसी होती हैं ! जब जब पत्रकारों ने जनता की आवाज़ उठाई होंगी जब जब जनता को सरकार से मिलने वाली योजनाओ का लाभ मिलता रहा हैं  ! आज  अधिकतर पत्रकार भाई बहन वह ख़बर लिखते , लगाते व दिखाते हैं जो शासन प्रशासन की इच्छा अनुसार होती हैं ! पत्रकार निष्पक्ष रह कर समाज में बुराई फैलाने वाले कार्यों को भरस्टाचार को उजागर करता हैं तो उसको गालियाँ मिलती हैं , उसको निपट लेने की चेतावनी ही नही जान से मार देने की योजना बनाने के लिये सड्यंत्र रचने शुरू करने लगते हैं ! अगर पत्रकार हत्थे नही चढ़ता हैं तो उसके परिवार को साज़िश करके फँसा दिया जाता हैं ! सुई का फ़ावड़ा , रस्सी का साँप बनाने की महारत रखने वाली पुलिस  इस तरह के सब साधन अपने पास पहले से सुरक्षित रखती हैं  , जो किसी के भी ऊपर मंघडत आरोप लगा कर सलाखों के पीछे पोंहचाने में देर नही लगाती ! आश्चर्य होता हैं कि जिस पुलिस को जनता की सुरक्षा करने के लिये भारत सरकार वर्दी से नवाज़ कर ज़िम्मेदारी सौंपती हैं , और आश्वासन लिया जाता हैं कि आप ईमानदारी के साथ अपने कार्य कर्तव्य को करते रहेंगे ! लेकिन कुछ दौलत के ऐसे भूखे होते हैं जो क़समे वादे , संविधान को भूल कर मनचाही रिश्वत खोरी लेने के लिये इलाके के दल्लो के द्वारा पर्दे के पीछे नोटों की गड्डीयां लेकर मौज मस्ती की ज़िन्दगी गुज़ारते हैं ! ऐसे लोग जनरक्षक की जगह भक्षक बन जाते हैं ! इन भक्षक बने कुछ की वजह से पुलिस विभाग को जनता ग़लत निगाहों से देखती हैं ! जबकि मात्र  5% ही मछलियाँ ऐसी होती हैं जिनकी वजह से पुरे तालाब को ही गंदा समझ कर गुमराह हों जाते हैं ! हमारा देश भारत ऐसा देश हैं जहाँ के संस्कार ऐसे होते हैं कि हर माँ अपने बच्चों को किसी का दिल ना दुखाना , किसी का माल ना हड़पना , किसी की दौलत पर नज़र ना रखना , किसी से एक पैसा छल कपट से ना लेना , हर एक बहन बेटी की रक्षा करना  आदि का पाठ पढ़ाती हैं , और 95 % बच्चें अपनी माँ के दिए संस्कार द्वारा ही जीवन को सच्चाई की राह पर चलते हैं !! बेबाकी से पत्रकारिता करने करने वाले भले ही ग़रीब रहते हैं! क्यों कि भारत सरकार द्वारा सभी पत्रकारों को वेतन , या कोई पालिसी, तो मिलती नही हैं , इस लिये पत्रकार गरीब रहते हैं ! अगर कोई मालदार होगा तो उसका अपना कोई दूसरा व्यवसाय होता हैं , या उसके परिवार से उसको सहयोग मिलता रहता हैं ! आप ख़ुद ही बताओ कि क्या सभी पत्रकार निष्पक्ष रह कर सभी मामलो को निष्पक्षता के साथ उजागर करते हैं ! मेरा ख़ुद का विचार हैं कि शायद सभी मामलो में ईमानदारी के साथ ख़बर नही दिखाई जाती होंगी ! क्यों की कभी कभी कठपुतली की तरह नाचते हुए कुछ खबरों को इग्नोर भी करना पड़ जाता होगा ! उसकी सबसे बड़ी मजबूरी यह होती हैं कि अगर इग्नोर नही किया गया तो उसकी सज़ा ऐसी मिलने की आशंका होती हैं जिसको झेलना मुश्किल ही नही बल्कि यादगार बनकर रहता हैं ! जब जब पत्रकार सच दिखाएगा जब जब पत्रकार को सबसे पहले ब्लेकमेकिंग , अवैध वसूली , जनता पर भय बनाना , रुपया लेकर ख़बर को दबा देना , आदि जैसे आरोप लगा दिए जाते हैं ! और उन आरोप को सत्य मानकर पत्रकार की छवि को धूमिल करने में कोई कसर नही छोड़ी जाती ! जब पत्रकार की छवि धूमिल हों जाती हैं , उसके परिवार को फँसा दिया जाता हैं , पिड़ताड़ित किया जाता हैं तो पत्रकार की रीढ़ की हड्डी ऐसे टूट जाती हैं कि वह अगर दोबारा खड़ा होना भी चाहे तो खड़ा होना उसके लिये दुभर हों जाता हैं ! लेकिन जिसको सच लिखने दिखाने का जूनून होता हैं वह घर में नही बैठा करता , वह संघर्ष करता हैं ! आगे बढ़ कर लिखता हैं क्यों कि क़लम किसी के मातहत या किसी के हुक्म से नही चलता , क़लम आज़ाद था और सदा आज़ाद रहेगा ! इस लिये सच लिखने में बै खोफ़ हों कर निडर हों कर बुराई को उजागर कीजिये , यही पत्रकारिता हैं ! क़लम की ताक़त आपके साथ हैं हर पत्रकार के पास हैं !


लेखक-न्यूज़ एडिटर

मेरी चाहत सबको न्याय

वी के बशीर, मुरादाबाद उत्तर प्रदेश।

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