देश का मुसलमान मज़हबी रहनुमाओं को सियासत में पसंद नहीं करता, वह चाहता है कि मज़हबी रहनुमा क़ौम ओ मिल्लत की फ़लाहा ओ बहदूद के काम करें।

बेताब समाचार एक्सप्रेस के लिए बरेली से मुस्तकीम मंसूरी की रिपोर्ट।

जब जब मुस्लिम रहनुमाओं ने सियासी रहनुमाई के लिए सियासत के मैदान में कदम रखा, मुस्लिम समाज ने उन्हें नाकार दिया आखिर क्यों?

बरेली, देश का मुसलमान मज़हबी रहनुमाओं को सियासत में पसंद नहीं करता, वह चाहता है कि मज़हबी रहनुमा क़ौम ओ मिल्लत, की फ़लाहा ओ बहदूद के काम करें, वह चाहता है कि हमारे रहनुमा सामाजिक बुराइयों को दूर करने और मुस्लिम इत्तेहाद पर काम करें, जब जब मुस्लिम रहनुमाओं ने सियासी रहनुमाई के लिए सियासत के मैदान में कदम रखा मुस्लिम समाज ने उन्हें नाकार दिया,


यही वजह है कि वर्ष 1983 में तौकीर रज़ा ‌ख़ान ने पहली बार बिनावर विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा और करारी हार के साथ जमानत जब्त करा बैठे थे। वही वर्ष 1984 में तौकीर रज़ा खांन के भाई तौसीफ़ रजा़ ख़ान ने भी सांसद बनने का सपना देखते हुए पीलीभीत लोकसभा क्षेत्र से (दलित मजदूर किसान पार्टी) से  चुनाव लड़ा और करारी हार का सामना करते हुए वह भी जमानत जब्त करा बैठे थे। उसके बाद तौसीफ़ रजा़ ख़ान को इस बात का एहसास हो गया की आस्था के नाम पर मुसलमान वोट नहीं करता‌ यही वजह रही कि तौसीफ़ रजा़ ने दोबारा चुनाव लड़ने का ख़याल दिल से निकाल दिया, फिर उसके बाद एक बार फिर विधायक बनने का सपना देखने वाले तौकीर रज़ा खांन ने  वर्ष 1991 में जनता दल के टिकट पर कैन्ट विधानसभा क्षेत्र से विधायक बनने के सपने को साकार करने के लिए जनता दल से चुनाव लड़ा और बुरी तरह हार का मुंह देखते हुए ज़मानत ज़ब्त करानी पड़ी, क्योंकि मुस्लिम समाज नहीं चाहता कि हमारे मज़हबी रहनुमा जिनको वह सर आंखों पर बिठाता है। वह दर दर जाकर वोट मांगें, इसी वजह से मुस्लिम समाज ने तौकीर रज़ा खांन की ज़मानत ज़ब्त करा कर अपने गुस्से का इज़हार किया था, मगर तौसीफ़ रज़ा खांन और तौकीर रज़ा खांन को चुनाव में मिली करारी हार के बाद उसी खा़नदान के मन्नान रज़ा खांन मुन्नानी मियां भी सांसद बनने का सपना देखने लगे और वर्ष 1989 में बरेली लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े और 20 हजार वोट लेकर अपनी जमानत जब्त करा बैठे। आपको याद दिलाते चले जब मुन्नान‌ रज़ा खांन मुन्नानी मियां लोकसभा चुनाव लड़े उस वक्त कोंग्रेस से बेगम आबिदा अहमद बरेली से सांसद हुआ करती थी, मगर मन्नान रज़ा खांन मुन्नानी मियां के चुनाव लड़ने से बेगम आबिदा अहमद चुनाव हार गई, और कई बार चुनाव हार चुके, संतोष गंगवार पहली कांग्रेस सांसद बेगम आबिदा को हराकर, भाजपा सांसद बने, अगर वर्ष 2009 को छोड़ दे, जिसमें प्रवीण सिंह ऐरन ने कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर, भाजपा सांसद संतोष गंगवार को कड़े मुकाबले में चुनाव हरा दिया था, परंतु फिर से संतोष गंगवार वर्ष 2014 और 2019 में फिर से भाजपा सांसद बने, परंतु इस बार संतोष गंगवार का टिकट काटकर छत्रपाल गंगवार को भाजपा ने बरेली लोकसभा क्षेत्र से  प्रत्याशी बनाकर चुनाव मैदान में उतारा है, परंतु फिर एक बार उलमाओं और तथाकथित मुस्लिम धर्मगुरुओं ने मुस्लिम समाज के मतदाताओं से अपील करना शुरु कर दी है, कि वह किसको वोट करें और किसको ना करें, इसको लेकर पढ़े-लिखे मुस्लिम मतदाताओं का मानना है, की इस तरह की अपीलें करके मुस्लिम  मतदाताओं को भ्रमित करने का कार्य कर रहे हैं, लेकिन यह चुनाव अलग तरीके का चुनाव है जहां पर दलित, पिछड़ा, अल्पसंख्यक मतदाता बाबा साहब के संविधान, देश के लोकतंत्र, एवं अपने अधिकारों और आरक्षण को बचाने लिए वोट करेगा।

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