अराजक गतिविधियों, नफरत फैलाने की कोशिश करने वाले असामाजिक तत्वों, नफरत भरे माहौल पैदा करने वालों पर क्यों नहीं रहती खुफिया तंत्र की निगाहें...!!
बेताब समाचार एक्सप्रेस के लिए मुस्तकीम मंसूरी की रिपोर्ट,
उत्तर प्रदेश महिला कांग्रेस कमेटी की प्रदेश सचिव उज़मा रहमान ने मणिपुर दंगों के बाद हरियाणा में हुए दंगों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि जब भी देश में नफ़रत भरे माहौल पैदा होकर दंगे हो जाते हैं, तब ही क्यों सरकारे नींद से जागती हैं,जब तक सब कुछ खत्म हो चुका होता हैं| उन्होंने कहा कि फिर उच्चअदालतों को इस ओर संज्ञान लेना पड़ता हैं!
उल्लेखनीय है कि पिछले साल भी सुप्रीम कोर्ट साफ शब्दों में यह कह चुका है कि नफरत फैलाने वाले भाषणों के मामले में स्वतः संज्ञान लेकर प्राथमिकी दर्ज करना होगा भले ही ऐसे भाषणों के खिलाफ किसी ने कोई शिकायत दर्ज न कराई हो!अदालत ने यह भी स्पष्ट किया था कि नफरत भरे भाषण गंभीर अपराध हैं जो देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने के साथ-साथ हमारे गणतंत्र के दिल और लोगों की गरिमा को प्रभावित करते हैं!हालांकि ये ऐसी बुनियादी बातें हैं जिसका ध्यान सभी आम लोगों और खासतौर पर सरकारों को हर वक्त रखना चाहिए! उज़मा रहमान ने कहा कि यह किसी से छिपा नहीं है कि धर्म या समुदाय के हित का झंडा उठा कर कई बार आम लोगों को संबोधित करते हुए सार्वजनिक रूप से ऐसी बातें कहीं जाती हैं जिससे भावनाएं भड़कती हैं और उसके बाद कोई छोटी-सी चिंगारी भी हिंसा की आग को फैला सकती है! कांग्रेस नेत्री ने सवाल करते हुए कहा कि अगर व्यापक पुलिस और खुफिया तंत्र के साथ हर जगह चौकस रहने का दावा करने वाली सरकारें अराजक गतिविधियों नफरत फैलाने की कोशिश करने वाले असामाजिक तत्त्वों पर बिना देरी किए लगाम लगा दें तो क्या व्यापक हिंसा को समय रहते नहीं रोका जा सकता है? अफसोस है कि कई बार खुफिया सूचनाओं के बावजूद सरकार अपेक्षित स्तर तक गंभीर नहीं होती हैं और इसका नतीजा त्रासद होता है! जबकि इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट यहां तक कह चुका है कि नफरत भरे भाषण इसलिए भी नहीं रुक रहे हैं क्योंकि सरकारे कमजोर और शक्तिहीन है! शायद किसी भी सरकार को अपने बारे में इस तरह की टिप्पणी अच्छी नहीं लगेगी! लेकिन आए दिन ऐसी खबरें आती रहती हैं कि धर्म के नाम पर होने वाली सभाओं या जुलूसों आदि में खुलेआम भावनाएं भड़काने वाली बातें कही जाती हैं उसके नतीजे में कई बार हिंसा फैलने की आशंका बनती है लेकिन पुलिस प्रशासन और सरकार की ओर से तब तक इसकी अनदेखी की जाती है जब तक मामला तूल न पकड़ ले या हाथ से न निकल जाए! कांग्रेस नेत्री उज़मा रहमान ने कहा कि यह कैसी विडंबना है, कि अदालत के निर्देश और कानून लागू करने को लेकर सरकारों को खुद सक्रिय रहना चाहिए मगर उसके लिए अदालतों को हिदायत देनी पड़ती है।
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