ताज़गी से जो रखते थे रिश्तेदारियां,
लेने लगे हैं देखिए वो भी उबासियां।
उन्हें उम्र ने ऐसे सफ़र पर ला दिया,
ज़िन्दगी में रदीफ़ बचा ना क़ाफिया।
जो लोग थे अपने छोड़कर चले गए,
क़दमों के सांचे में रह गया हाशिया।
छाले जो पड़ गए, होता नहीं सफ़र,
बहुत दूर चली गईं कश्मीरी वादियां।
वो पत्थर नहीं है कि पिघल जाएगा,
मत कीजिए आंसुओं की बर्बादियां।
नौसीखिए मंज़िल को पा गए मगर,
लड़खड़ाती रहीं मेरी समझदारियां।
चिड़िया थी हवा में उड़ गई लेकिन,
सोचा ना सफ़र में मिलेंगी आंधियां।
हिलती हैं जब भी तस्वीर बनाती हैं,
उठाकर ले जाओ सारी निशानियां।
मुफ़्त में बेच डाली हैं हसरतें तमाम,
वो कहां से देंगे ज़फ़र तहबज़ारियां।
ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र
एफ-413,
कड़कड़डूमा कोर्ट,
दिल्ली-110032
zzafar08@gmail.com
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