प्रमुख के गुण




प्रमुख के गुण 


चर्चा में आया हूं घर मे जाते है तो देखते है सब ठीक है कौन देर रात तक नही है उसका कुशल लेना चाहें हम कितने भी थके हो। ऐसे ही एक चरवाहा जो मवेशियों को आगे लेकर जा रहा होता है वो आगे नही चलता पीछे से उनकी निगरानी रखता है। एक भी मवेशी कम न हो जाये। या इधर उधर न हो जाये।ऐसे ही राजनीति में जो मंच पर नज़र आ रहा है उसको प्रमुख माना जाता है।



संगठन में भी जिसको दायित्व मिल गया वो अपने को प्रमुख समझता है। पर इसके उदाहरण हमारे ग्रंथो में मिलते है जैसे भगवान श्रीकृष्ण सारी गायों को चराने ले जाते थे और उनकी बांसुरी सुन सभी मुग्ध हो जाती थी। और जैसा भगवान कहते वो चल देती थी। ऐसा नही है कि और लोग बांसुरी बजाए तो भी बात मान लेंगी। वो उन गायों का ध्यान भी रखते थे किसी गाय को क्या तकलीफ है उसका निवारण करना , सभी गायों से उनका निजी स्पर्श, प्यार, होता था। तो सभी गायों की पता होता था कि हमे अब चारा मिलेगा, बांसुरी की मधुर धुन सुनने को मिलेगी और कृष्ण जी का प्यार भरा स्पर्श और आत्मीयता मिलेगी । वो दौड़ी दौड़ी चली आती थी।


इसी तरह महाभारत युद्ध मे श्री कृष्ण ने हथियार न उठाने की कसम खाई थी और न उनका कोई दायित्व था और न उस युद्ध से उन्हें कुछ मिलना था फिर भी धर्म और अधर्म की लड़ाई में वो कैसे अपने को अलग कर सकते थे। घमंडी दुर्योधन ने उनकी सेना मांगी क्योंकि उसे पता है कि श्रीकृष्ण ने शस्त्र न उठाने की सौगंध ली है। और अर्जुन ने फिर भी उनसे अपना सारथी बनने का निवेदन किया। और श्रीकृष्ण पर कोई दायित्व न होने के बाद भी वो पूरे महाभारत में प्रमुख दिखाई दिये।


तो कहने का भाव यह है कि आप जब भाव से लगन से अपना समझ ,योजना पूर्वक कोई भी कार्य करोगे चाहे वो घर हो , संगठन हो, समाज हो लोग आपको ही प्रमुख मानेंगे।


मनोज शर्मा "मन"


101 , प्रताप खंड , विश्वककर्मा नगर , दिल्ली 110095


MOB. N. 9871599113






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